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दिव्यांग जयदेव पाल के हौसले को सलाम

दिव्यांग जयदेव पाल आत्मनिर्भर बन औरो के लिए बना प्रेरणा स्रोत


खाट पर लेटकर साइकिल बनाते जयदेव पाल

मुसाबनी : कहते हे की अगर हौसला बुलंद हो तो मनुष्य शारीरिक दिव्यांगता को भी मात दे सकता है।एसी ही तस्वीर मुसाबनी प्रखंड के देवली गांव में देखने को मिली। दिव्यांग जयदेव पाल इस आर्थिक मंदी के दौर में भी साइकिल और मोटरसाइकिल रिपेयरिंग कर परिवार चलाने में सक्षम है। दिव्यांग जयदेव पाल खाट पर लेट कर साइकिल और मोटरसाइकिल मरम्मत कर पिछले दो वर्षो से अपनी परिवार की रोजी-रोटी चला रहा है।इस काम में उसकी पत्नी ललिता पाल भरपुर सहयोग करती है।रोजाना सवेरे 8 बाजे पत्नी ललिता पाल अपने पतिव्रता का धर्म निभाते हुए पति जयदेव पाल को ट्राइसाइकिल से गोहला पंचायत के संख नदी पुलिस स्थित अपने साइकिल रिपेयरिंग की दुकान पहुंचाती है दिन भर कड़ी मेहनत कर सांध्य 6 बाजे देवली स्थित अपने घर चले जाते है।रोजाना इस काम से जयदेव 150 से 250 रुपया नगद कमा लेता है।हालांकि साकार के तरफ से ट्राइसाइकिल और पेंशन मिला है, फिर भी जयदेव उसके भरोसे नहीं बेठा है।वह काम कर आज भी घर में माता, पिता, पत्नी और दो बच्चों का बोझ बखूबी उठा रहा है।समय-समय पर उकार पुत्र भी पिता का हाथ बटाने दुकान आता है।दोनों बच्चों का भी पढाई का खर्च इसी आमदनी से चलता है।जयदेव बचपन से दिव्यांग नहीं था। वह  घाटशिला कॉलेज में इंटर की पढाई कर रहा था, तभी घर के छत से गिर कर पेर ख़राब हो गया।लाख इलाज कराने पर भी पेर ठीक नहीं हो पाया।उस वक्त तक उसकी सादी हो चुकी थी।वह हिम्मत नहीं हारा।घर चलाने के लिए घर से ही साइकिल रिपेयरिंग का काम शुरू किया।उसके बाद धीरे-धीरे उसने अपना एक दुकान संख नदी स्थित मुसाबनी देवली मुख्य सड़क के किनारे खोला।पत्नी के सहयोग से आज वह किसी के मोहताज नहीं है। वह पांच सदस्यों का परिवार चलाने में सछम है।जयदेव ने कहा की अगर उसे मोटर चालित वाहन मिलती है, तो उसे दुकान का सामान घर से लेकर स्वयं दुकान तक आने में सहायता मिलेगा।सरकार से उन्होंने सर छुपाने के लिए प्रधान मंत्री आवास की मांग की है।      


साइकिल का पहिया बनाते दिव्यांग जयदेव पाल

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